मंगलवार, 15 जून 2010

और हवा जहरीली हो गई...........

...........????

किसी प्रगतिशील शहर के एक व्यस्त चौराहे पर..... |
वे दोनों विपरीत दिशाओं से चले आ रहे थे .....अपने आप में खोए हुए |
तभी अचानक .... !! न जाने कैसे दोनों की आपस में टक्कर हो गई | बात बढ़ते-बढ़ते   मार - पीट  तक पहुँच गई | दोनों ओर से  लात - घूंसे चलने की नौबत आ गयी | गालियों की बौछार भी शुरू हो गई | पर कुछ समझदार लोगों ने बीच-बचाव कर मामला शांत करवा दिया | सब अपने -अपने घर चले गए |
दूसरे दिन अखबार में खबर छपी - " भरे बाजार में दलित को पीटा " 
अब वह दोनों साधारण से राहगीर नहीं रह थे , उन्हें उनकी पहचान मिल चुकी थी और हवा कुछ जहरीली सी  हो गई थी.........

शुक्रवार, 11 जून 2010

खबर की कीमत............!!!!!!!

"युगान्तरेर मूल्य - फिरंगिर कांचा माथा "
                     "अर्थात युगांतर का मूल्य फिरंगी का तुरंत ताजा काटा हुआ सर है"

स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय अपनी प्रखर पत्रकारिता से फिरंगी सरकार को आक्रान्त कर देने वाले "युगांतर " की ये पंक्तियाँ कुछ दिनों पहले  उस समय मुझे बरबस याद हो आईं , जब   मीडिया मुग़ल  'नेट' पर उपलब्ध "उच्च गुणवत्ता"  (?) वाली खबरों का मूल्य बताने में जुटे थे |
माना  कि आज कि  परिस्थितियों की तुलना  १००  वर्ष पूर्व की परिस्थितियों से नहीं की जा सकती ,  इस अवधि के दौरान पत्रकारिता में  मिशन के साथ - साथ व्यवसायिकता का पुट भी आ गया  है ,  मंहगाई के इस दौर में  गुणवत्ता युक्त सूचनाओं   की लागत भी स्वाभाविक रूप से बढ़ी है ,   ........लेकिन क्या इसके बाद भी यह सारे तर्क पाठकों से खबर का मूल्य वसूलने के लिए पर्याप्त मान लेने जाने चाहिए ? या फिर माना जाना चाहिए कि वास्तविकता में यह  प्रयास सूचना की लागत से जुडा न होकर , कमाई का एक और रास्ता खोलने से सम्बंधित  है |  तो क्या यह भी मान लेना चाहिए कि पत्रकारिता का मूल्य उद्देश्य- 'मिशन' ,  'प्रोफेशन'  की  गहरी खाई में कहीं  दफ़न हो गया है ?
बिलकुल नहीं !  वर्तमान समय में भी विशेषकर "प्रिंट मीडिया" लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन पूरी ईमानदारी से कर रहा है | अत ; तथाकथित  "मीडिया  मुग़ल  महोदय" और दर्शकों -पाठकों से खबरों का मूल्य वसूलने  को आतुर उनके साथियों को प्रिंट मीडिया से सीख  लेनी चाहिए , जो मुद्रण लगत में अत्यधिक बढ़ोत्तरी होने के बाद भी पाठकों को "उच्च गुणवत्ता युक्त ' खबरें उपलब्ध करवा रहा है |
और आज जब स्वतंत्रता प्राप्ति के ६२ वर्षों पश्चात हम  लक्ष्य २०२० तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने कि दिशा  में कार्य  कर रहे हैं , तो ऐसे समय में अशिक्षा , भ्रष्टाचार गरीबी , कुरीतियों , को दूर करने में सहायक सूचना माध्यमों कि भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है |


अत: ऐसे प्रयास न सिर्फ  जन को सूचना से दूर करने वाले सिद्ध  होंगे ,  बल्कि भारत को एक महाशक्ति के तौर पर स्थापित करने में मीडिया के मार्ग में रोड़े डालने वाले होंगे   |


बुधवार, 9 जून 2010

भोपाल गैस कांड : जिम्मेदार कौन ?


मैं मनीष तिवारी अपने विचारों के साथ आपके सामने उपस्थित हूँ ,


गैस रिसाव के बाद लगा लाशों का ढेर 
                                  कल काफी लम्बे समय के बाद भोपाल गैसकाण्ड का फैसला आया , उम्मीद  थी  कि एक लम्बे  समय के बाद ही सही कम से कम गैस पीड़ितों को न्याय तो मिलेगा , पर सारी उम्मीदें फैसला आने के साथ ही समय धूमिल हो गयीं , और साथ ही यह भी पता चला कि २०,००० हजार लोगों की जान की कीमत है महज ५ लाख रुपये , क्योंकि सजा देने और दिलाने  के नाम पर तो बस सरकारी औपचारिकता निभा दी गयी है , हाँ इस मौके पर भी हमेशा  की तरह शासन-प्रशासन के मध्य अपनी छवि उजली रखने और सारा दोष दूसरों पर मढ़ देने का पुराना खेल शुरू हो गया है , और जब बात सहानुभूति को वोटों में कैश करने की हो तो भला  विपक्ष इसमें कैसे पीछे रहता ,
                                                                                         अब सरकार से लेकर स्वयंसेवी सगठनों और न्यायिक  तंत्र  ने आरोप लगाना शुरू कर दिया है कि पुलिस ने लापरवाही की है , पर्याप्त सबूत नहीं पेश किये गए , मुकदमें के दौरान लापरवाही बरती गयी  और जानबूझकर हल्की धाराएँ लगायी गयीं ,
पर भई  सोचने  की बात तो यह कि यह जो  सारे लोग आज हो हल्ला मचा रहे हैं, उस समय कहाँ थे जब यह सब किया जा रहा था ?
क्या सरकार ने उस समय अपनी आँखे बंद कर रखीं थीं, जब केस के दौरान लापरवाही बरती जा रहीं थी ?
दुधमुहे को बचाने को अंतिम सांस तक जुटी रही एक माँ
क्या ऐसा नहीं है ?
और अगर ऐसा नहीं है , तो भी इस सब के लिए जितनी  जिम्मेदार जांच एजेंसियां और पुलिस हैं उससे कहीं ज्यादा दोषी सरकार और यही स्वयंसेवी संगठन भी हैं !
हाँ यदि वे दोषी नहीं हैं , तब तो फिर सभी उतने ही पाक-साफ हैं ?
तो फिर आखिरकार भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार कौन है  ?



क्या सच में कोई नहीं ???? 

 
                                                                                                             
असल गुनहगार कौन  ?                                              कुछ काम न आया...