लूटतंत्र
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शनिवार, 3 जुलाई 2010
ओ माय लव !
ओ माय लव !
महसूस किया है मैंने
अपने आप में तुम्हे
शायद ! तुमने भी
किया हो मुझे प्यार
लेकिन माफ़ करना
ये आग जो सीने में
धधकती है रात - दिन
वास्तव में उनके लिए है
जिनके दिल जलते है
बुझे हुए चूल्हे देखकर
(धर्मेन्द्र जी "आजाद "
)
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